Basic Teacher Coaching Institute

HIDE

Facebook

GRID_STYLE

Latest Updates

latest

भारतीय शिक्षा आयोग - हण्टर आयोग

सन् 1854 के वुड के " आदेश पत्र" में नीहित शिक्षा सम्बन्धी संस्तुतियों से भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए । परन्तु 1857 की क्रान्ति के फलस्वरूप भारतीय शिक्षा की प्रगति का मार्ग कुछ समय के लिए अवरूद्ध हो गया। यह क्रान्ति कम्पनी के शासन के विरूद्ध भारतवासियों के प्रबल असन्तोष को प्रकट करता था। अतः सन् 1858 में ब्रिटिश पार्लियामेण्ट ने कम्पनी के शासन को समाप्त करके इंग्लैण्ड की रानी विक्टोरिया को भारत की सम्राज्ञी घोषित किया। ब्रिटिश पार्लियामेण्ट ने सन् 1880 में लार्ड रिपन को इस देश के नए गवर्नर जनरल के रूप में मनोनीत किया । लार्ड रिपन ने भारतीय शिक्षा की समस्याओं को दूर करने तथा जनसाधारण की शिक्षा का प्रसार करने के लिए 1882 में "भारतीय शिक्षा आयोग (Indian education commission) की नियुक्ति की । इस आयोग के अध्यक्ष सर विलियम हण्टर थे। अतः इनके नाम से इस आयोग को " हण्टर कमीशन" के नाम से भी जाना जाता है।

आयोग के सुझाव व सिफारिशें

आयोग ने भारतीय शिक्षा के अंगों और क्षेत्रों का गहन अध्ययन करने के पश्चात उनके सम्बन्ध में सुझावों और सिफारिशों को प्रस्तुत किया। इस आयोग ने प्राथमिक शिक्षा पर विशेष बल दिया और उसके प्रत्येक अंग जैसे नीति, संगठन आर्थिक व्यवस्था, पाठ्य विषय, अध्यापकों के प्रशिक्षण आदि के विषय में अपने सुझाव सरकार के सामने प्रस्तुत किए, जो निम्नवत है-

 1. प्राथमिक शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य है जनसाधारण में शिक्षा का विस्तार होना चाहिए ।

2. आदिवासियों और पिछड़ी जातियों में प्राथमिक शिक्षा प्रसार के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए

3. प्राथमिक शिक्षा को व्यावहारिक बनाया जाए । पाठ्यक्रम में ऐसे विषय सम्मिलित किए जाए जो छात्रों को आत्म निर्भर बना सके ।

4. सरकार प्राथमिक विद्यालयों को पूर्ण संरक्षण प्रदान करें ।

5. प्राथमिक शिक्षा के प्रशासन और संचालन का पूर्ण उत्तरदायित्व सरकार को जिला परिषदों, नगरपालिकाओं आदि स्थानीय निकायों को सौंप देना चाहिए ।

6. स्थानीय निकायों द्वारा स्थायी और पृथक कोष का निर्माण किया जाना चाहिए। गाँव और शहर के विद्यालयों के लिए अलग-अलग कोषों का निर्माण किया जाए जिससे गाँव में व्यय किए जाने वाले धन का उपयोग नगरों में न किया जाए। आयोग ने आदेश दिया कि वह धनराशि केवल प्राथमिक शिक्षा के विकास के लिए ही की जाए ।

7. प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में पहले से समाविष्ट विषयों के अतिरिक्त अन्य उपयोगी विषयों जैसे- चिकित्सा, विज्ञान, कृषि, बहीखाता, क्षेत्रमिति, गणित आदि समिलित किया जाना चाहिए। सम्पूर्ण देश में एक ही पाठ्यक्रम होना चाहिए उसे स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर निर्धारित किया जाना चाहिए ।

प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षण स्तर को ऊँचा उठाने के लिए आयोग ने अध्यापकों के प्रशिक्षण पर बल दिया और स्थान-स्थान पर नार्मल स्कूल खोलने की सिफारिश की। प्रशिक्षण विद्यालयों की स्थापना ऐसे स्थान पर ही की जाए जहाँ अधिक से अधिक प्राथमिक विद्यालय हो । कम से कम एक नार्मल स्कूल एक प्रान्तीय निरीक्षक में क्षेत्र में आ जाए।

प्रत्येक निरीक्षक का कर्त्तव्य है कि वह नार्मल स्कूलों की सफलता के लिए अपने अधीन प्रशिक्षण विद्यालयों में रूचि ले और छात्र - अध्यापकों में शिक्षण के प्रति प्रेरणा उत्पन्न करें। प्राथमिक विद्यालयों पर व्यय करने के लिए जो धनराशि निश्चित की जाए, उस पर प्राथमिक विद्यालयों का पूर्ण अधिकार रहे।