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पियाजे का सिद्धान्त

पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत


जीन पियाजे एक प्रसिद्ध स्विस मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने बच्चों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में गहन अध्ययन किया। उन्होंने एक सिद्धांत प्रस्तुत किया जिसे पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत के नाम से जाना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार, बच्चे एक निश्चित क्रम में संज्ञानात्मक विकास करते हैं और उनके सोचने और समझने का तरीका उम्र के साथ बदलता रहता है।

पियाजे के सिद्धांत के अनुसार बच्चों का संज्ञानात्मक विकास चार मुख्य अवस्थाओं से गुजरता है: 

1. संवेदी-गति अवस्था:

    • जन्म से 2 साल तक
    • बच्चे अपनी इंद्रियों और मांसपेशियों का उपयोग करके दुनिया के बारे में सीखते हैं।
    • वे वस्तु स्थायित्व (object permanence) जैसी अवधारणाओं को विकसित करते हैं।
2. पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था:
    • 2 से 7 साल तक
    • बच्चे भाषा का उपयोग करना शुरू करते हैं और प्रतीकात्मक खेल खेलते हैं।
    • वे अहं केंद्रित होते हैं और दूसरों के दृष्टिकोण को समझने में कठिनाई होती है।
3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था:
    • 7 से 11 साल तक
    • बच्चे तार्किक सोचना शुरू करते हैं लेकिन केवल मूर्त वस्तुओं और घटनाओं के संदर्भ में।
    • वे संरक्षण (conservation) जैसी अवधारणाओं को समझते हैं।
4. औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था:
    • 11 साल से ऊपर
    • बच्चे अमूर्त सोचने में सक्षम हो जाते हैं और वैज्ञानिक तरीके से समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।
    • वे परिकल्पनाएं बना सकते हैं और उनका परीक्षण कर सकते हैं।

पियाजे के सिद्धांत का महत्व

पियाजे के सिद्धांत ने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति ला दी है। इस सिद्धांत के आधार पर शिक्षक बच्चों की उम्र और संज्ञानात्मक विकास के स्तर के अनुसार शिक्षण विधियों को डिजाइन कर सकते हैं।

  • बच्चों की व्यक्तिगत गति से सीखना: पियाजे के सिद्धांत के अनुसार, बच्चों की अपनी गति से सीखने की क्षमता होती है।
  • अनुभव आधारित सीखना: पियाजे ने जोर दिया कि बच्चे अपने अनुभवों के माध्यम से सीखते हैं।
  • खेल के माध्यम से सीखना: खेल बच्चों के संज्ञानात्मक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

पियाजे के सिद्धांत की आलोचना

हालांकि पियाजे का सिद्धांत बहुत प्रभावशाली रहा है, लेकिन इसकी कुछ आलोचनाएं भी हुई हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि पियाजे ने बच्चों की संज्ञानात्मक क्षमताओं को कम आंका है और बच्चों की सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों को नजरअंदाज किया है।

पियाजे का सिद्धांत शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान है और आज भी इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।