कोहलबर्ग के नैतिक विकास सिद्धांत के अनुसार, नैतिक विकास निम्नलिखित तीन स्तरों से होकर गुजरता है:
1. पूर्व-पारंपरिक स्तर-
- दंड और आज्ञापालन अभिविन्यास : इस स्तर पर बच्चे अच्छे और बुरे का निर्णय इस आधार पर करते हैं कि क्या उन्हें दंड मिलेगा या पुरस्कार।
- सापेक्षतावादी अभिविन्यास : इस स्तर पर बच्चे अपने स्वयं के हितों और जरूरतों को प्राथमिकता देते हैं।
2. पारंपरिक स्तर-
- अच्छा लड़का-अच्छी लड़की अभिविन्यास : इस स्तर पर बच्चे दूसरों को खुश करने और समाज में स्वीकार किए जाने की इच्छा रखते हैं।
- कानून और व्यवस्था अभिविन्यास : इस स्तर पर बच्चे नियमों और कानूनों का पालन करना महत्वपूर्ण मानते हैं।
3. पश्चात-पारंपरिक स्तर-
- सामाजिक अनुबंध अभिविन्यास : इस स्तर पर लोग नैतिक सिद्धांतों और मूल्यों पर आधारित निर्णय लेते हैं।
- सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत : इस स्तर पर लोग अपने स्वयं के नैतिक सिद्धांतों के आधार पर निर्णय लेते हैं।
कोहलबर्ग के सिद्धांत का महत्व
कोहलबर्ग के सिद्धांत ने नैतिक विकास के बारे में हमारी समझ को गहरा किया है। इस सिद्धांत के आधार पर हम बच्चों को नैतिक शिक्षा दे सकते हैं और उन्हें नैतिक निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं।
कोहलबर्ग के सिद्धांत की आलोचना
कोहलबर्ग के सिद्धांत की कुछ आलोचनाएं भी हुई हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि कोहलबर्ग ने नैतिक विकास को बहुत पुरुष केंद्रित माना है और महिलाओं के नैतिक विकास को कम महत्व दिया है। इसके अलावा, कुछ विद्वानों का मानना है कि नैतिक विकास सांस्कृतिक रूप से निर्धारित होता है और कोहलबर्ग का सिद्धांत सभी संस्कृतियों पर लागू नहीं होता है।
कोहलबर्ग का सिद्धांत नैतिक विकास के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान है और आज भी इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।