देश तथा समाज के लिए उपयोगी, सुयोग्य एवं उत्तरदायी नागरिकों का निर्माण करने में शिक्षा की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
शिक्षा के प्रमुख स्तरों - प्रारम्भिक, माध्यमिक तथा उच्च स्तर में से प्रारम्भिक शिक्षा समग्र शिक्षा व्यवस्था की आधारशिला है । इस तथ्य को दृष्टि में रखते हुए भारतीय संविधान के नीति निदेशक तत्व के अन्तर्गत अनुच्छेद 45 में 6 से 14 वर्ष तक के उम्र के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क तथा अनिवार्य प्रारम्भिक शिक्षा का संकल्प व्यक्त किया गया, परन्तु अब संविधान के 86 वें संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत एक नया अनुच्छेद 21 के जोड़कर बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना मौलिक अधिकार में सम्मिलित हो गया है। इस अधिकार को प्रभावी बनाने के लिए संसद में 4 अगस्त, 2009 को बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 पारित हो गया है। राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद 27 अगस्त, 2009 को इसे भारत के राजपत्र में प्रकाशित कर दिया गया है। इसके साथ ही देश के हर एक बच्चे को शिक्षा का मौलिक अधिकार कानूनी रूप से प्राप्त हो गया।अनुच्छेद 29 (2) में ऐसे समुदाय के अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं के स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा और राज्य ऐसी शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में अल्पसंख्या वर्ग की शिक्षा संस्थाओं के विरूद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेंगा कि वह किसी धार्मिक सम्प्रदाय के प्रबन्ध में है।
निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 6 से 14 वर्ष की आयु हर एक एक बच्चे को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों के दायित्वों को निर्धारित करता है ।
स्कूल को परिभाषित करते हुए चार प्रकार के स्कूल बताए गए हैं-
1. सरकार द्वारा स्थापित और नियमित स्कूल ।
2. अनुदान प्राप्त निजी स्कूल ।
3. विशेष श्रेणी के स्कूल जैसे नवोदय, केन्द्रीय विद्यालय आदि ।
4. अनुदान न पाने वाले निजी स्कूल ।
निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिकार-
6 से 14 वर्ष की आयु के हर बच्चे को अपने पड़ोस के स्कूल में निःशुल्क और अनिवार्य प्रारम्भिक शिक्षा को पूरा होने तक प्राप्त करने का अधिकार होगा ।अपनी प्रारम्भिक शिक्षा को पाने और पूरा करने में किसी बच्चे को किसी तरह का शुल्क या खर्चा देने की जरूरत नहीं है ।यदि कोई बच्चा 6 वर्ष की आयु पर किसी विद्यालय में प्रवेश नहीं ले पाता है, तो वह बाद में अपनी उम्र के अनुरूप कक्षा में प्रवेश ले सकता है। उसे अपनी कक्षा के स्तर पर आने के लिए निःशुल्क प्रशिक्षण पाने का भी अधिकार होगा। किसी भी बच्चे को प्रवेश लेने से इन्कार नहीं किया जाएगा और जब तक उसकी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी नहीं हो पाती, उसे न तो विद्यालय से निकाला जाएगा और न ही उसे रोका जाएगा। यदि वह निर्धारित 14 वर्ष की आयु तक प्रारम्भिक शिक्षा पूरी नहीं कर पाता, तो उसके बाद भी पढ़ाई पूरी होने तक उसे निःशुल्क शिक्षा दी जाती रहेगी ।बच्चे को एक स्कूल से दूसरे स्कूल में स्थानांतरण का अधिकार है। यदि किसी स्कूल में प्रारम्भिक शिक्षा पूरा करने का प्रावधान नहीं है तो बच्चे को किसी भी दूसरे स्कूल में स्थानांतरण लेने का अधिकार होगा। प्रधानाध्यापक को टी०सी० तुरन्त निर्गत करनी होगी। इसमें देरी करने पर प्रधानाध्यापक के खिलाफ सेवा नियमावली के अनुसार अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी। जिस स्कूल में स्थानान्तरण होना है। वहाँ टी०सी० को देर से प्रस्तुत करने को प्रवेश देने के लिए इन्कार करने या देर से प्रवेश देने का आधार नहीं बनाया जा सकता ।
केन्द्र, राज्य, स्थानीय सरकारों और अभिभावकों के दायित्व-
इस अधिनियम के लागू होने के तीन साल के भीतर सरकार और स्थानीय सरकारों को पड़ोस का स्कूल स्थापित करना होगा । केन्द्र सरकार और राज्य सरकार दोनों की साथ-साथ जिम्मेदारी है कि वे इस अधिनियम के प्रावधानों के क्रियान्वयन के लिए धन का प्रावधान करें । केन्द्र सरकार, राज्य सरकार के साथ परामर्श कर खर्च का निश्चित प्रतिशत राज्य सरकार को सहायता अनुदान के तहत प्रदान करेगी । केन्द्र सरकार राष्ट्रीय पाठ्यचर्या का फ्रेमवर्क तैयार करेगी, शिक्षकों के प्रशिक्षण के मानदण्ड लागू करेगी और नवाचार, अनुसंधान, नियोजन और क्षमता विकास को प्रोत्साहित करने हेतु राज्य सरकारों को आवश्यक तकनीकी सहायता और संसाधन उपलब्ध कराएगी । राज्य और स्थानीय सरकारें 6 से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे का प्रवेश, उपस्थिति और प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण होना सुनिश्चित करेगी, पड़ोस में विद्यालय की सुविधा सुनिश्चित करेगी । यह भी सुनिश्चित करेगी कि कमजोर और वंचित वर्गों के बच्चों के साथ कोई भेदभाव नहीं हो । विद्यालय भवन, शिक्षक और शिक्षण सामग्री सहित आधारभूत संरचना की उपलब्धता सुनिश्चित करेगी, बच्चों को अच्छी शिक्षा और शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण सुविधा प्रदान करने के अलावा विद्यालयों के काम-काज की निगरानी भी सुनिश्चित करेगी । प्रत्येक अभिभावक का यह दायित्व होगा कि वह 6 से 14 वर्ष तक के अपने बच्चे को विद्यालय में पढ़ने के लिए भर्ती कराए। तीन साल से अधिक उम्र के बच्चों को प्रारम्भिक शिक्षा हेतु तैयार करने के लिए उपयुक्त सरकार बच्चों के आरम्भिक देख-रेख के साथ उनके 6 वर्ष की उम्र होने तक पूर्व स्कूल शिक्षा (अर्ली चाइल्डहुड केयर) प्रदान करने के लिए आवश्यक व्यवस्था बना सकती है।
स्कूल और शिक्षकों के दायित्व-
सरकारी विद्यालय निःशुल्क शिक्षा प्रदान करेंगे ही निजी और विशेष श्रेणी वाले विद्यालयों को भी आर्थिक रूप से निर्बल समुदायों के बच्चों के लिए पहली कक्षा में 25 प्रतिशत स्थान आरक्षित करना होगा । कोई भी विद्यालय प्रवेश लेने के लिए न तो कोई अनिवार्य दान या चंदा ले सकेगा और न ही अभिभावक / बच्चे के चयन के लिए कोई प्रणाली अपना सकेगा । प्रवेश देने के लिए अनिवार्य रूप से चंदा या दान लेने की स्थिति में उसे दस गुना अर्थ दण्ड देना पड़ सकता है और चयन प्रणाली अपनाने के लिए पहली बार ऐसा करने पर 25 हजार रूपए और उसके बाद अपनाई गई हर प्रक्रिया पर 50 हजार रू0 का दण्ड देना होगा। यदि कोई स्कूल पूर्व प्राथमिक शिक्षा भी प्रदान कर रहा है तो उसे इन कक्षाओं में सीटें आरक्षित करनी होगी। इन बच्चों के खर्च को राज्य सरकार वहन करेगी । बच्चे की उम्र का निर्धारिण जन्म प्रमाण के द्वारा किया जएगा जो कि जन्म, मृत्यु एवं विवाह पंजीकरण, 1986 के अनुसार दिया जाएगा। लेकिन प्रमाण पत्र के अभाव में किसी भी बच्चे को प्रवेश देने से इन्कार नहीं किया जा सकता । किसी भी बच्चे को किसी कक्षा में रोका नहीं जाएगा और न ही स्कूल से निष्कासित किया जाएगा । जब तक कि वह प्रारम्भिक शिक्षा पूरी न कर लें । किसी भी बच्चे को शारीरिक या मानसिक यातना नहीं दी जाएगी। ऐसा किए जाने पर सेवा नियमों के तहत उस व्यक्ति पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी।
अनुदान न पाने वाले निजी स्कूलों को छोड़कर सभी स्कूल एक प्रबंधन समिति का गठन करेंगे। इस समिति में स्थानीय सरकार के चुने हुए प्रतिनिधि और स्कूल में नामांकित बच्चों के अभिभावक होंगे। कुल सदस्यों में तीन चौथाई सदस्य अभिभावकों में से होंगे ।
शिक्षकों के दायित्व निम्नलिखित होंगे-
नियमित समय से स्कूल में उपस्थित होना ।
पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाना और उसे पूरा करना ।
निर्धारित समय में पाठ्यक्रम को पूरा करना ।
प्रत्येक बच्चे की सीखने की योग्यता का आकलन करना ।
नियमित अभिभावक बैठकें आयोजित करना और बच्चे की नियमितता, उपस्थिति, सीख और सीख में प्रगति के बारे में चर्चा करना । इसके अतिरिक्त बताए गए अन्य दायित्वों को निभाना । इस अधिनियम के लागू होने के 6 महीने बाद राज्य सरकार और स्थानीय अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षक - छात्र अनुपात अधिनियम की अनुसूची के अनुसार हर एक स्कूल में होगा। इसके लिए गैरशैक्षणिक कार्यों (सिर्फ जनगणना,चुनाव और आपदा राहत को छोड़कर) से शिक्षकों को हटाया जाए। नियुक्त करने वाले अधिकारियों को यह ध्यान रखना होगा कि विद्यालय में शिक्षकों की कुल रिक्तियाँ स्वीकृत पदों से 10 प्रतिशत से अधिक नहीं रहे।
प्रारम्भिक शिक्षा का पाठ्यक्रम और इसका पूरा किया जाना-
प्रारम्भिक शिक्षा हेतु पाठ्यक्रम और मूल्यांकन की विधि उपयुक्त सरकार के अध्यादेश द्वारा निर्धारित शैक्षणिक प्राधिकारी द्वारा किया जाएगा। पाठ्यक्रम और मूल्यांकन विधि को तय करने वाले शैक्षणिक प्राधिकारी इन बातों पर ध्यान देगा-
संविधान के निहित मूल्यों से इसकी अनुरूपता ।
बच्चों का समग्रता में विकास ।
बच्चे के ज्ञान, संभावित क्षमता और प्रतिभा का विकास ।
शारीरिक एवं मानसिक योग्यताओं का पूर्णतम सीमा तक विकास ।
बाल-केन्द्रित और बाल सुलभ तरीके से विभिन्न क्रियाकलापों, अन्वेषण और खोज के माध्यम से सीख उत्पन्न करना ।
जहाँ तक हो सके पढ़ाई का माध्यम बच्चे की मातृ भाषा में हो ।
बच्चे को भय, सदमा और चिन्ता मुक्त बनाना और उसे अपने विचारों को खुलकर कहने में सक्षम बनाना ।